तिब्बत में बौद्ध धर्म की साक्या परम्परा
Abstract
तिब्बत में बौद्ध धर्म का आर्विभाव सातवीं शताब्दी में हुआ। तिब्बत के राजा स्रोङ-सेन-गम-पो के आमंत्रण पर भारत से पद्मसंभव ने जाकर वहां बौद्ध परम्परा की नींव डाली। ऐसा शान्तरक्षित की सलाह पर हुआ था जिनका िसी तरह का प्रयास असफल रह गया था। पद्मसंभव द्वारा स्थापित परम्परा ञीङ्-मा कहलाती है तथा इसके अनुयायी ञीङ-मा-पा। ञीङ् का अर्थ पुराना होता है। बाद में साक्या, कार्ग्युद और गे-लुग नामक तीन अन्य परम्पराओं की नींव पड़ी जिनके प्रणेता तिब्बती ही थे। इनमें से साक्या परम्परा का वर्णन यहां किया जा रहा है। साक्या परम्परा में लाम-डे साधना खूब प्रचलित है। लाम का अर्थ है मार्ग और डे फल के अर्थ में आता है। इस परम्परा का अर्थ है बुद्ध के मार्ग पर चलना ही मार्ग भी है और फल भी। अलग से फल के विवेचन की आवश्यकता नहीं। फिर भी शोधार्थियों के अनवेषण को ध्यान में रखते हुए परम्परा से लाम-डे के फल विवेचन की भी चर्चा इस शोध-पत्र में वर्णित है।
विजय कुमार सिंह