धम्मपद अट्ठकथा में वर्णित सामाजिक अवस्था
Abstract
बौद्ध युग के उपदेषों के प्रबल प्रभाव को जानने के लिए तत्कालीन सामाजिक दषा पर विचार करना अनिवार्य है। बौद्ध त्रिपिटक ग्रन्थ के अनुषीलन से सामाजिक अवस्था का रोचक चित्र हमें उपलब्ध होता है। इस युग में जाति भेद अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया था। जाति के अनुसार उच्च-नीच की भावना अति प्रबल हो गयी थी। ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों ही अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए प्रयत्नषील थे। इनमें क्षत्रिय, ब्राह्मण तथा वैष्य को उच्च जाति का माना गया है। इस युग के सामाजिक जीवन में एक और प्रमुख बात यह पायी जाती है कि विभिन्न जातियाँ अलग-अलग ग्रामों में बसने लगी। बौद्ध ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि ब्राह्मण ग्राम, क्षत्रिय ग्राम, बनिया ग्राम, निषाद ग्राम, चांडाल ग्राम जैसे जातियों के आधार पर ग्राम बने थे। बौद्ध युग में भगवान् बुद्ध के द्वारा जातिवाद का खण्डन किया गया था पर उन्हें कहाँ तक सफलता मिली, यह प्रष्न विवादास्पद है। हालांकि भगवान् बुद्ध को जातिवाद के खण्डन में पूर्णरूप से केवल भिक्षु संघ में सफलता मिली थी।