अनगारिक धम्मपाल
आधुनिक भारत में बौद्ध-पुनर्जागरण के पुरोधा
Abstract
अनगारिक धम्मपाल: आधुनिक भारत में बौद्ध-पुनर्जागरण के पुरोधा
मुकेश मेहता*
प्रथम द्वेवाचिक उपासक तपस्सु एवं भल्लिक नें उरुवेला (बोधगया) में बुद्ध के समक्ष ‘धम्मं शरणं गच्छामि’ कहते हुए जिस धम्म की शरण ली थी तथा बुद्ध नें इसिपत्तन (सारनाथ) में ‘धम्मचक्कपवत्तन’ करते हुए जिस सधम्म की स्थापना की थी उसे ही आज हम बौद्ध-धर्म के नाम से जानते हैं। अगर वर्तमान समय से गणना करें तो भारत में बौद्ध-धर्म का इतिहास लगभग 2600 वर्ष प्राचीन ठहरता है। भारतीय बौद्ध-धर्म के ढाई सहस्त्राब्दियों का यह सफ़र बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। संघ-भेद की शुरुआत तो द्वितीय-संगीति अर्थात महापरिनिर्वाण के प्रथम शताब्दी बाद से ही हो चुकी थी। कालान्तर में तो उपयुक्त राजनैतिक संरक्षण के अभाव में यह अपनी ही जन्मभूमि से लुप्तप्राय हो चला था। 12वीं सदी आते-आते भारत में बौद्ध-धर्म की स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि तत्कालीन कवि जयदेव नें अपनी रचना गीतगोविन्द में तो बुद्ध को विष्णु का अवतार ही बना दिया था। 19वीं सदी के शुरुआत (अर्थात जेम्स प्रिंसेप और अलेक्जेंडर कनिंघम की पुरातात्विक खोजों से पूर्व) तक चटगाँव और हिमालय के कुछेक क्षेत्रों को छोड़कर शेष भारत में शायद ही कहीं बौद्ध-धर्म अस्तित्व में रहा हो।
ऐसे समय में जबकि भारत में बौद्ध-धर्म का अस्तित्व बेहद संकट में था, अनगारिक धम्मपाल संकटमोचन बन कर उभरे। उन्होंने बोधगया, जो कि बौद्धों के चार महातीर्थों में से एक है, पर बौद्धों का अधिकार दिलाने के लिए एक लंबी अदालती लड़ाई लड़ी और अंततः सन 1949 में (उनके निधन के 16 साल बाद) महाबोधि-मंदिर के प्रबंधन का जिम्मा आंशिक रूप से महाबोधि-सोसायटी को मिलने के साथ ही इस लड़ाई की जीत हुई। अनगारिक धम्मपाल नें 1893 में शिकागो की विश्व-धर्मसंसद में थेरवादी बौद्ध-धर्म के प्रतिनिधि के रूप में शिरकत किया था। भारत में बौद्ध-स्थलों के पुनरोद्धार एवं बौद्ध विहारों के नवनिर्माण में भी अनगारिक धम्मपाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सारनाथ के महाबोधि मंदिर की स्थापना भी उनके ही द्वारा की गई। 1956 की दीक्षाभूमि की धर्म-प्रवर्तन की घटना को सामान्यतः भारत में सामूहिक बौद्ध-धर्मांतरण की प्रथम घटना के रूप में देखा जाता है परंतु इस घटना के लगभग अर्द्ध-शताब्दी पूर्व ही अनगारिक धम्मपाल से प्रेरित होकर दक्षिण भारत के दलितों नें बड़ी संख्या में बौद्ध-धर्म अपनाया था।
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*पीएच.डी. शोधार्थी, पालि एवं बौद्ध-अध्ययन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-221005
ई.मेल- mehtabhu18@gmail.com