महाबोधि संघाराम का संक्षिप्त परिचय
Abstract
पहाडों एवं जंगलों से घिरी नेपाल की तराई में जिस सम्राट अशोक ने गौतम बद्धु के पर्वूवर्ती का नागमण का स्तूप स्थापित किया, वह बोधगया को कैसे भूल सकता था। उसने बोधगया की यात्रा की पर अपने शिलालेख में उसने यहाँ स्तंम्भ खड़ा करने अथवा चैत्य बनाने का उल्लेख नहीं किया है। पीछे जब वह बुद्ध की जन्मभूमि लुंबिनी गया, तब उसने वहाँ शिलालेख स्तंभ खड़ा किया। इस आधार पर प्रो0 ’’डी0 के बरूआ’’ का विचार है कि ’’अशोक ने बोधगया में कोई चैत्य या वेष्टन-वेदिका नहीं बनवायी थी।’’ पर यह बात समझ में नहीं आती कि जब अशोक ने अन्य तीर्थ स्थानो में स्मारक बनवाये तब वह बोधगया को क्यों भूलगया। ऐसा अनुमान होता है कि अपने पहले तीर्थाटन में वह बोधगया गया था और उसने यहाँ के लिए कोई योजना नहीं बनायी थी जिसको पीछे कार्यान्वित किया गया। वह फिर कभी बोधगया नहीं आया इसलिए इसका उल्लेख किसी स्तंभ पर नहीं मिलता। ’’दिव्यावदान’’ में स्पष्ट है कि सम्राट अशोक की तीर्थ यात्राओं में लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर सम्मिलित थे। उपर्युक्त सभी स्थानों में अशोक ने स्मारक, मंदिर बनवाये। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार सम्राट अशोक ने बोधिवृक्ष के चारों ओर दस फुट पत्थर का घेरा बनवाया था जिसे ह्वनेसांग ने स्वयं देखा था। ’’ललितविस्तर’’ में कहा गया है कि बोधगया के मंदिर की पवित्र भूमि की पवित्रता उपगुप्त ने अशोक को बतायी थी और अशोक ने एक लाख मुद्राएं इस स्थान पर स्मारक बनाने के लिए दी थी। प्राचीन बर्मी अभिलेख भी सम्राट अशोक के बनवाये प्रथम बोधगया मंदिर का उल्लेख करते है।