निर्वाण का स्वरूप

(स्थविरवाद के विशेष संदर्भ में)

  • Pinku Kumar 9709789623
Keywords: निर्वाण का स्वरूप

Abstract

बौद्ध परम्परा में मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य निर्वाण की प्राप्ति है। बुद्ध ने इसे धर्म और विनय की एकमात्र रस और ब्रह्मचरियवास का सर्वोत्कृष्ट फल बतलाया है। यह सर्वमल विरहित अत्यन्त परिशुद्ध अवस्था का नाम हैै, जिसके अधिगम से जाति-जरा-समन्वित भवचक्र सदा के लिए भग्न हो जाता है तथा लोकोŸार सुख की प्राप्ति होती है। निर्वाण को महासमुद्र से उपमित किया गया है। जिस प्रकार महासमुद्र का केवल एक रस है, लवण रस; उसी प्रकार बुद्ध के द्वारा प्रवेदित धर्म-विनय का भी केवल एक रस है वह है- विमुक्तिरस अर्थात् निर्वाण की प्राप्ति।
स्थविरवादी बौद्ध वाड.्मय में अपना अपूर्व स्थान रखता है और उसका अपना महत्त्व है। बुद्ध ने कठोर तपश्चरण और आध्यात्मिक साधना के अनन्तर दो परमार्थ सत्यों का अधिगम किया जिसमें प्रथम प्रतीत्यसमुत्पाद और दूसरा निर्वाण। ये दोनों परमार्थ सत्य अत्यन्त दुर्बोध, अतक्र्य और दुर्दश थे। बौद्ध वाड.्मय में जो अध्यात्मिक साधना विहित है उस साधना के परिणामस्वरूप ही योगावचर को निर्वाण का अधिगम होता है।

Published
2020-09-29