बौद्ध धर्म में दान: समीक्षात्मक अवलोकन

  • Dr. C.S. Paswan
Keywords: बौद्ध धर्म में दान

Abstract

विश्व के इतिहास में छठी शताब्दी ई. पू. धार्मिक सामाजिक उथल- पुथल के क्षेत्र में एक नये युग का अरूणोदय काल माना जाता है। भारत सहित विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में इस समय अनेक नये धर्मों का उदय हुआ, जिसने लोगों की सामाजिक और धार्मिक स्थिति को परिवर्तित किया। इस समय भारत में अनेक नये धर्मों का प्रादुर्भाव हुआ जिसमें महावीर द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म और गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म प्रमुख है। छठी षताब्दी ई.पू. में उत्तर भारत के मुख्य गंगाघाटी में पुरातन जीवन-षैली एवं दर्षन के विरुद्ध अनेक नवीन धार्मिक सम्प्रदायों में केवल जैन और बौद्ध धर्म ने ही प्राचीन भारतीय संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया।इन दोनों धर्माें को त्याग तथा वैराग्य प्रधान जीवन के वैदिक यज्ञवाद के विरुद्ध स्थापित किया गया। बुद्ध एवं तत्कालीन हिन्दू धार्मिक तथा दार्षनिक सिद्धान्तों के बीच उपस्थित मतभेदों के विशय थे- जाति विभाजन, जाति अभिमान, वेदो की एके ान्तिक प्रामणिकता एवं यज्ञों को स्थापित महत्ता। किन्तु भारतीय समाज बुद्ध के प्रयासों के काफी बाद तक अपरिवर्तित-सा रहा क्योंकि जातक कहानिंयों में जातीय गौरव एवं अनेक जातिगत विषेशताओं की सामाजिक वास्तविकता का दिग्दर्षन मिलता है। बुद्ध मानवीयता, मैत्री, नैतिकता के पूँज स्त्रोत थे। उसने जनसामान्य के दुख से दुःखी होकर गृह त्याग किया और बोधि प्राप्ति के बाद भी व्यक्तिगत सुख से उपर उठ कर मानव कल्याण में अपने जीवन को लगा दिया। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए संघ को स्थापित करते हुए बुद्ध ने कहा - चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय लोकानुकंपाय अत्थाय हिताय देवमनुस्सानं ति।

Published
2020-09-29