पालि साहित्य में दान पारमिता: एक अनुषीलन
Abstract
आदि काल से ही भारत वर्ष मनिषियों का जन्म एवं ज्ञान स्थल रहा है। ज्ञानियों के साथ-साथ महादान कर्ता का भी प्रादूर्भाव समय-समय पर होता रहा है। यहाँ तक कि याचक (लेनेवाला) हार जाता है परन्तु दाता (देने वाला) नहीं। पालि साहित्य में ऐसा ही महामानव ‘सिद्धार्थ‘ का प्रार्दूर्भाव हाता है, दानियों में सर्वश्रेष्ठ थे। 10 पारमिताओं में पहला दान पारमिता का अभ्यास करने के बाद ही आगे चलकर बोधिसत्व से सम्यक सम्बुद्ध बनते है। पालि वा) मय में पारमिताओं को बुद्ध धारन धर्म भी कहा गया है पारमिताए बुद्धत्व तक जाने का सोपान (मार्ग) है। पालि वा)मय में 10 पारमिताओं का वर्णन मिलता है। जातक निदान कथा में वर्णित है कि बुद्धत्व की आकांक्षा रखने वाले ‘सुमेध‘ नामक भिक्षु के अथक परिश्रम करने पर 10 पारमिताओं प्रकट हुई।