बुद्धकालीन सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक अवस्थाओं का उपमाओं द्वारा निरूपण

  • जय कृष्ण कृष्णम
Keywords: बुद्धकालीन सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक अवस्थाओं, उपमाओं द्वारा निरूपण

Abstract

भरत मुनि ने अपनी रचना में कहा है- ‘‘काव्य रचना में जो कुछ सादृष्य से उपमित किया जाय उसकी संज्ञा उपमा है। उपमा गुण एवं आकृति पर निर्भर करती है।1 आचार्य मम्मट ने कहा है- साद्यम्र्य मुपमा भेद2 अर्थात दो भिन्न पदार्थो के सादृष्य प्रतिपादन का नाम उपमा है। आचार्य मम्मट ने ‘‘साधम्र्य’’ शब्द का प्रयोग किया है- सादृष्य का नहीं। काव्य प्रकाष के अनेक टीकाकार साधम्र्य के समर्थक है और कतिपय इसे सादृष्य का ही पर्याय मानते है। सम्भवतः आचार्य मम्मट की दृष्टि में ‘‘साधम्र्य’’ एवं सादृष्य दो भिन्न चीजे है, जैसे अगर कहा जाय- अनेकार्थ सदृषः अर्थात यह इसके सदृष्य है। किन्तु तब प्रष्न उठता है कि वह किन धर्मो के कारण है? इसी का उत्तर आचार्य मम्मट ने उपमा की परिभाषा में दिया है- अर्थात दो वस्तुओं में सादृष्य साधारण धर्म के कारण है।

Published
2020-09-29