तिब्बत में बौद्ध धर्म की साक्या परम्परा

Keywords: साक्या परम्परा, तिब्बत में बौद्ध धर्म

Abstract

साक्या परम्परा का मूल भारतीय बौद्ध धर्म में दिखता है। भारतीय परम्परा के सिद्ध विरूपाक्ष (विरूपा) को इनका ‘आदिपुरुष’ कहा जा सकता है। यों तिब्बत में साक्या परम्परा खोन परिवार से सम्बन्धित है। पाँच विद्वानों के समूह को साक्या परम्परा को आरम्भ करने का श्रेय जाता है। ये हैं-कुन्गा-ञीङ्-पो(1092-1198),सोनम-त्छे-मो (1142-1182), जेत्सुन-डाग- पा-ग्यात्सेन (1147-1216), साक्या पण्डित(1182-1251) और डो-गेन-छोस-ग्याल-फाग-पा (1235-1280)। उपर्युक्त पाँचों लामाओं में से पहले कुन्गा-ञीङ््-पो, कोन-छोग-ग्याल-पो के पौत्र थे। कोन-छोग-ग्याल-पो का काल 1034-1102 था और उन्होंने 1073 में साक्या विहार की स्थापना की थी। यह साक्या विहार शिगात्से में ‘पोन-पो-री’ पहाड़ियों पर था। इन पहाड़ियों के आस-पास धूसर वर्ण की घास होने के कारण नामकरण साक्या हुआ। तिब्बती भाषा में ‘सा’ का अर्थ धरती और ‘क्या’ का अर्थ धूसर होता है जो वहाँ की मृदा और उस पर उगी घास का वर्ण है।
साक्या के संस्थापक आदिपुरुष कोन-छोग-ग्यालपो के बारे में कहा जाता है कि उनकी शिक्षा-दीक्षा भारत के वर्तमान भागलपुर के मन्दार पहाड़ियों में स्थित विक्रमशीला महाविहार में सिद्ध नरो-पा (नड़पाद), रत्नाकरसिद्धि और वागीश्वरकीर्ति आदि गुरुओं के अन्तर्गत हुई थी। तथागत द्वारा मञ्जुश्रीमूलकल्प में त्सांग प्रदेश स्थित पोन-पो-री पहाड़ियों पर साक्या विहार की स्थापना की भविष्यवाणी की गई है।

Author Biography

Vijay Kumar Singh, Panjab University Chandigarh

Professor and Chairperson

Department of Chinese and Tibetan languages

Panjab University Chandigarh

 

Engaged in teaching and research guidance since 1994 in the subject specialization of Tibetan Buddhism and Theravada

Published
2020-01-31