युवाओं के लिए बुद्ध का संदेश

  • Medhavi Krishna
Keywords: युवाओं के लिए बुद्ध का संदेश

Abstract

‘युवाओं के लिए बुद्ध का संदेश लेख को लिखते समय मैंने विशेषकर युवाओं को ध्यान में रखा है तथा जगह-जगह बुद्ध के संदेश को युवाओं के लिए प्रेरणा का आधार बनाया है। वास्तव में मैंने यायावर बुद्ध के उपदेश को ध्यान में रखकर युवाओं को संदेश देने की कोशिश की है। बुद्ध वास्तव में यायावर प्रकृति के हैं और यही बात उन्हें ‘शिक्षक बुद्ध’ बनाता है। आज के परिवेश में जहाँ शिक्षा का बाजारीकरण हो चुका है, वहाँ इस प्रवृत्ति का अभाव शिक्षक और विद्यार्थी में देखा गया है जिसके कारण सही ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाती। मैं इस लेख के जरिए बताना चाहता हूँ कि ज्ञान प्राप्ति के लिए यायावरी (घुमंतू) होना महत्त्वपूर्ण है। घोर तपस्या के उपरांत जब बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई तो वे एक यायावर जीवन बीताते हुए इस ज्ञान को समाज के नीचले पायदान पर बैठे लोगों के बीच बाँटा। गृहस्थ से यायावर बने गौतम बुद्ध भारत के पूर्व और उत्तर में जगह-जगह घूमते रहे। बौद्धों के एक प्रारंभिक ग्रंथ के अनुसार उस समय पूर्वी और उत्तरी भारत में 16 राज्य अथवा सीमा-क्षेत्र थे। कपिलवस्तु और शाक्य क्षेत्र के पश्चिम में कौशल राजा था, जो वर्तमान में अयोध्या और वाराणसी है। दक्षिण में मगध राज था जो आज दक्षिण बिहार है। पूर्व में आदिवासी मल्ल और लिच्छवी क्षेत्र था जो आज पूर्वी उत्तरप्रदेश है और उत्तर में हिमालय जो अभी नेपाल है। बुद्ध कपिलवस्तु से निकलकर इन सभी क्षेत्रों में घुमंतु संन्यासी और उपदेशक की तरह बार-बार भ्रमण किया। जीवन के अन्तिम चरण में बुद्ध ने श्रावस्ती को अपना मुख्यालय के रूप में बनाया। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया जो कोशल में बनारस के निकट था। भारत के इन हिस्सों में गौतम बुद्ध को देखा और सुना गया। बुद्ध ने सर्वप्रथम उन पांच शिष्य को अपना उपदेश दिया जो उन्हें छोड़ कर चले गये थे। बुद्ध के धम्म (धर्म) के संबंध में इन्हीं पाँचों ने सबसे पहले सुना। धम्म का निकटतम सटीक अनुवाद ‘सच्चा’ रास्ता या ‘सत्य’ है। इसी मौके पर बुद्ध ने पहली बार निब्बान (निर्वाण) की चर्चा की जिसका अनुवाद विलुप्त होने या अंत होने के रूप में किया जा सकता है। यहीं बुद्ध ने अपने पांच शिष्यों को स्वीकार किया और इसी के साथ संघ की शुरूआत हुई। इस दिन को बाद में धम्मचक्र के घूमने (धर्म चक्र परिवर्तन) के उत्सव की भांति स्वीकार कर लिया गया। यह संभव है कि बुद्ध ने पहली बार अपने सत्य के बारे में ईसा के जन्म से 528 वर्ष पूर्व जुलाई महीने की पूर्णिमा को उपदेश दिया।

Published
2020-01-31