Editoral
Abstract
मानव जीवन एवं प्रकृति में अन्यतम एवं अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। प्राचीन काल से ही विभिन्न सभ्याताओं का विकास प्रकृति की गोद में नदी की उपत्याकाओं में होता रहा है। भारतवर्ष में प्रकृति के महत्व व उसकी उपयोगिता के प्रति समाज सचेष्ट रहा है। वास्तव में प्राचीन भारतीय संस्कृति में बुद्ध धर्म प्रारंभ से अंत तक वृक्षों, जंगलों, मानव एवं पशुधन के कल्याण का पक्षधर रहा है। भगवान् बुद्ध के जन्म से परिनिर्वाण काल तक उनकी गतिविधियाँ को देखते हुए उन्हें पर्यावरण की रक्षा का प्रथम पथ प्रदर्शक तथा उपदेशक कहा जाय, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भगवान् बुद्ध के समान प्रकृति प्रेमी, पर्यावरण रक्षक विरले ही हुए है। बुद्ध का जन्म, तपस्या, ज्ञान-प्राप्ति, प्रथम उपदेश, महापरिनिर्वाण आदि अधिकांश घटनाएं प्रकृति की गोद में घटित हुई। अतः प्रकृति के रूप से यह सिद्ध होता हे कि बुद्ध पर्यावरण रक्षण के महान् समर्थक व प्रणेता थे।